Life history of Veerappan dacoit
फिल्मों में चोर-लुटेरों और भयानक दिखने वाले डाकुओं को आपने जरूर देखा होगा. लेकिन आप यह भी भली भांति जानते होंगे कि यह डाकू सिर्फ एक फिल्मी पात्र नहीं हैं बल्कि असल जीवन में भी कुछ लोगों का ऐसे खूंखार डाकुओं से पाला पड़ता है. घने जंगल का कोई अंधेरा और घना कोना इन डाकुओं का गढ़ होता है और पुलिस हर समय इनकी तलाश में लगी रहती है. ऐसे डाकू इतने क्रूर होते हैं कि अगर इनके स्थान पर कोई गलती से भी कदम रख दे तो यह उसे जीवित नहीं छोड़ते.
हालांकि अब बदलते हालातों और कठोर पुलिसिया कार्यवाही के कारण ऐसा डाकुओं की संख्या में कमी आने लगी है लेकिन फिर भी इनके अगर इनके क्रियाकलापों के विषय में कोई सुन ले तो आज भी भय से कांप जाए. ऐसा ही एक खूंखार डाकू था कूज मुनिस्वामी वीरप्पा गौड़न उर्फ वीरप्पन. चंदन की लकड़ी और हाथी दांत की तस्करी करने वाले गिरोह का मुखिया वीरप्पन लंबे समय तक पुलिस को दांतों चने चबवाता रहा. उस पर अवैध रूप से शिकार करने जैसे आरोप भी लगे थे. कई वर्षों की मशक्कत के बाद आखिरकार पुलिस ने एक मुठभेड़ के बाद वीरप्पन नाम के इस भयानक डाकू का खात्मा कर दिया.
आमतौर पर हम वीरप्पन के विषय में बस उतना ही जानते हैं जितना हमने पढ़ा या सुना है लेकिन वीरप्पन की पत्नी का कहना है कि उसका पति भले ही एक डाकू था लेकिन वह उतना भी निर्दयी नहीं था जितना समाचारों में बताया जाता था. वहीं गांव के लोग भी वीरप्पन को अपना सहायक समझते थे.
कैसे बना वीरप्पन सामान्य बच्चे से एक खतरनाक डाकू ?
वीरप्पन का जन्म 18 जनवरी, 1952 को हुआ था. मात्र अठ्ठारह वर्ष की आयु में ही वह अवैध रूप से शिकार करने वाले गिरोह से जुड़ गया. कुछ ही समय में वह जंगल का सबसे खतरनाक शिकारी बन गया. उसने चंदन की लकड़ी और हाथी दांत को बेचकर बहुत पैसा कमाया. अनुमानित तौर पर ऐसा माना जाता है कि उसने कुल 2000 हाथियों को अपना शिकार बनाया था. वीरप्पन की बहन और भाई की हत्या कर दी गई और वीरप्पन ने पुलिस को ही इस दुखद घटना का जिम्मेदार मान लिया जिसके बाद वह पुलिस अधिकारियों का पहले अपहरण करता और बाद में उनकी हत्या कर देता था.
Indian Robin hood Veerappan – आखिर क्या कारण था वीरप्पन की इस लोकप्रिय छवि का ?
वीरप्पन की अपने गांव में रॉबिनहुड जैसी छवि थी जो अमीर लोगों से धन लूटकर गरीब और जरूरतमंद लोगों को देता था. वह कभी भी किसी असहाय व्यक्ति को अकेला नहीं छोड़ता था. यही वजह है कि गांव के लोग उसकी हर संभव सहायता करते थे. वह वीरप्पन को पुलिस के आने की सूचना दे देते थे ताकि वह वहां से भाग जाए.
इन सब के अलावा वीरप्पन कला प्रेमी भी था. वह कई पक्षियों की आवाज भी निकालता और अपना खाली समय संगीत को अर्पित करता था. उसे अपनी लम्बी घनी मूंछें बहुत पसन्द थीं. मां काली के भक्त वीरप्पन ने अपने गांव में एक विशाल मंदिर भी बनवाया था.
लेकिन वीरप्पन इतना भी कोमल नहीं था. क्योंकि एक बार उसने अपने दुधमुंहे बच्चे का गला स्वयं अपने हाथों से दबा दिया था और वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि जब पुलिस उसे ढूंढ़ने के लिए गांव में आए तब कहीं उस बच्चे के रोने से पुलिस को उसके घर में होने की सूचना ना मिल जाए. 18 अक्टूबर, 2004 को वीरप्पन नाम के इस खतरनाक व्यक्ति का अंत हो गया.
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