भारत एक अद्भुत और अलौकिक चमत्कारों का देश है जहां अनेक धर्मों और देवी-देवताओं में आस्था रखने वाले लोग रहते हैं. अनेक धर्म और मान्यताओं वाले लोगों के रहने के कारण भारत में बहुत से ऐसे स्थान भी हैं जहां लोगों का विश्वास स्थिर हो जाता है. हमीरपुर स्थित झोखर गांव एक बेहद अनूठा स्थान है जहां ना कोई मंदिर है और ना ही किसी प्रकार की मूर्ति पूजा फिर भी पारलौकिक और दैवीय शक्तियों पर विश्वास करने वाले लोगों की आस्था इस ग्राम से जुड़ी हुई है.
इस गांव में एक बड़ा सा नीम का पेड़ है जिसके नीचे एक बड़ा सा दैवीय टीला विद्यमान है. लोगों का मानना है कि इस टीले में अद्भुत शक्ति है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस टीले की मिट्टी लगाने से बड़े से बड़ा गठिया का रोगी भी कुछ ही समय में ठीक हो सकता है. वैसे तो बुंदेलखंड की सूखी धरती पर देवी-देवताओं से जुड़े अनेक स्थान हैं लेकिन जिसे वास्तविक रूप में चमत्कारी माना जा रहा है वो यह नीम के नीचे विराजमान टीला है.
बुंदेलझंड की धरती पर जितने भी दैवीय स्थान हैं उनका संबंध रोगों से है. लोगों का मानना है कि यहां आने से विभिन्न गम्भीर बीमारियां ठीक होती हैं. झलोखर गांव के भुवनेश्वरी देवी के टीले पर किसी भी तरह का प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता, लेकिन रविवार के दिन यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है. अधिकांश रोगी गठिया रोग के इलाज के लिए आते हैं. मान्यताओं के अनुसार नीम के पेड़ के नीचे जो टीला है उसकी मिट्टी को अपने शरीर पर लगाने मात्र से गठिया बीमारी जड़ से दूर हो जाती है.
मिट्टी लगाने वाला पुजारी बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की बिरादरी से नियुक्त किया जाता है. टीले के वर्तमान पुजारी कालीदीन प्रजापति का कहना है कि गठिया रोग से पीड़ित हजारों भक्त दूर-दराज के इलाकों और बड़े-बड़े शहरों से यहां आते हैं.
स्थानीय लोगों के अनुसार वर्षों पहले गांव के प्रेमदास प्रजापति को देवी मां ने स्वप्न में कहा था कि उनका स्थान मिट्टी का ही यानि कच्चा रहेगा, ताकि गठिया रोग से पीड़ित लोग अपने बदन में इसे लगा कर रोगमुक्त हो सकें.
सन् 1875 के गजेटियर में कर्नल टाड ने लिखा है कि इस दैवीय स्थान के पास के तालाब की मिट्टी में गंधक और पारा मौजूद है जो गठिया रोग को ठीक करने में सहायक होता है.
स्थानीय लोगों ने इस स्थान को दैवीय शक्ति से जोड़कर देखा है वहीं बांदा स्थित राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज एवं चिकित्सालय के प्राचार्य डॉ. एस.एन. सिंह का कहना है कि इस मिट्टी में औषधीय तत्व हैं और नीम में तमाम असाध्य बीमारियों को ठीक करने की क्षमता होती है, यही वजह है कि इस स्थान की मिट्टी लगाने से गठिया रोगियों को फायदा होता है. इसका किसी पारलौकिक शक्ति से कोई लेना-देना नहीं है. स्थानीय कॉलेज के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष का कहना है संस्कृत भाषा के हिंदी रूपांतरित ग्रंथ मां भुवनेश्वरी महात्म्य के अनुसार यह स्थान उत्तर वैदिककालीन है और जिस तालाब के पास की मिट्टी को गठिया रोग के लिए उपयोगी माना जाता है वह पहले सूरज कुंड नाम से विख्यात था. लोगों की गहरी आस्था है कि यहां लगातार पांच रविवार तक आकर टीले की मिट्टी लगाने से गठिया बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है.
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