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13वीं शताब्दी में लगा यह पेड़ दैवीय शक्ति के कारण एक चर्च बन गया !!

oakदुनिया में कला की कोई कमी नहीं है बस उसको पहचानने और समझने वाले चाहिए. संसार बेहतरीन कलाकारों और प्रतिभाओं से भरा हुआ है यही कारण है कि प्रत्येक देश के साथ-साथ राज्यों में भी शानदार कलाकारी का नमूना दिखाई दे जाता है.


फ्रांस का अलोउविले-बैलेफॉसे गांव भी एक ऐसा ही स्थान है जहां एक ऐसा अद्वितीय कला का नमूना है जो शोहरत की ऊंचाइयां छू रहा है. इस गांव की शान बन चुका शैने-चैपल कला के उत्कृष्ट नमूनों में से एक है. शैने-चैपल का अर्थ होता है ओक के वृक्ष पर बना चर्च.


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जी हां, यहां एक ओक के वृक्ष के ऊपर चर्च का निर्माण किया है. इस चर्च के साथ लोगों की गहरी आस्था भी जुड़ी हुई है. स्थानीय लोगों की मानें तो वह ओक का पेड़ कोई साधारण पेड़ नहीं है. सामान्य तौर पर ओक वृक्ष की आयु अन्य पेड़ों की तुलना में कहीं अधिक होती है. यह लगभग 200-300 वर्ष तक जीवित रह सकता है. लेकिन यह पेड़ 13वीं शताब्दी से यहीं लगा है.


आर्किटेक्चर का अनोखा और शानदार नमूना बन चुके इस पेड़ पर लकड़ी की घुमावदार सीढ़ियां बनाई गई हैं. यह सीढ़ियां पेड़ के ऊपर बने दो चैंबर्स तक जाती हैं. गांव में रहने वाले लोग इन दोनों कमरों का प्रयोग पूजा के लिए करते हैं.


निश्चित तौर पर यह ओक ट्री फ्रांस का सबसे बुजुर्ग पेड़ है, लेकिन इसकी वास्तविक उम्र हमेशा से ही एक विवादास्पद विषय रही है. इसके 13वीं शताब्दी से वहीं स्थित रहने जैसी बातों से बहुत से लोग इत्तेफाक रखते हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो उस समय फ्रांस में लुइस नौवें का शासन था और फ्रांस एक मजबूत हुकूमत हुआ करती थी. यह पेड़ हंड्रेड ईयर वॉर, ब्लैक डैथ, रीफॉर्मेशन और नेपोलियन के शासन में भी कायम रहा.


स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार यह वृक्ष हजार साल पुराना है लेकिन विशेषज्ञों के आंकलन के अनुसार इसकी आयु 800 वर्ष है. कथाओं पर विश्वास करें तो इस पेड़ में दैवीय शक्ति जैसी बातें भी सामने आती हैं. कहते हैं 17वीं शताब्दी के अंत में इस पेड़ पर बिजली भी गिरी थी जिसका झटका करीब 30 हजार डिग्री सेंटीग्रेड का था लेकिन इस पेड़ को कुछ नहीं हुआ जबकि उसके आसपास की सभी जगह तबाह हो गई थी.


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