पिछले भाग में हमने आपको दुनिया की कुछ ऐसी दण्ड प्रकिया से रूबरू कराया था जिसमें दर्द और पीड़ा की सारी पराकाष्ठा ही खत्म हो जाए. इन तरीकों से मौत पाने वाला इंसान भगवान से अपने लिए जल्द से जल्द मौत मांगता था और चाहता था कि अगले पचास जन्म तक उसको और उसकी पुश्तों को ऐसी मौत ना मिले. आज के अंश में भी हम आपको रूबरू करा रहे हैं कुछ ऐसे ही दर्दनाक मौत के तरीकों से.
आप अपनी आंखों से मौत को देखें और चाह कर भी कुछ ना कर सकें तो सोचिए यह मौत कैसी होगी. पांवों को आग में झुलसाकर मौत देना भी इन्हीं तरीकों में से एक है. मध्यकाल में प्रचलित कुछ मौत के तरीकों में यह तरीका भी बहुत दर्दनाक था. इसमें दोषी को बांधकर केवल उसके पैरों को जलाया जाता था. पांव के नीचे की आग को बीच-बीच में बंद या कम कर दिया जाता था ताकि व्यक्ति मूर्छित ना हो और उसे अधिक से अधिक दर्द महसूस हो.
सार्वजनिक मौत: Exposure
अगर आप एक चोर को खुलेआम पूरी जनता के सामने कठोर सजा देंगे तो आगे से समाज का कोई भी इंसान चोरी करने से पहले हजार बार सोचेगा और उस दंड को याद करेगा जो उस चोर को मिली थी. यह सोच मध्यकाल में कई देशों में प्रचलित थी जहां शासकों ने सार्वजनिक सजा का तरीका अपनाया था. इस तरह की सोच के कुछ अच्छे परिणाम थे तो कुछ बुरे. बुरा परिणाम तो यह था कि इस तरह की मौत बेहद दर्दनाक होती थी.
इस मौत की सड़के से जीवित वापस आना बहुत मुश्किल है
इस तरीके में दोषी को सार्वजनिक जगह पर जंजीरों से बांधकर रखा जाता था. अगर कुछ दिनों तक सूरज की गर्मी, ठंड और भूख-प्यास को सहन करने के बाद भी कैदी जि़ंदा बच जाता था तो उसे छोड देते थे. यह प्रकिया इंसान की प्रतिरक्षा शक्ति की अच्छी खासी परीक्षा लेती थी.
इस सजा को सार्वजनिक जगहों पर इसलिए दिया जाता था ताकि लोग न्याय का उल्लंघन करने से डरें.
चूहों से यातना देना: Rat Torture
देखने में बेहद मासूम और छोटे से लगने वाले चूहे मध्यकाल में दी जाने वाली सबसे दर्दनाक मौत के कारक थे. इनकी सहायता से ही मध्यकाल में कैदियों को ऐसी दर्दनाक मौत दी जाती थी कि वह मौत से पहले ही मर जाना पसंद करते थे. सोच कर देखिए कि आपके हाथ पर जब कभी चूहा हल्का सा काट लेता है तो आपको कितना दर्द होता है पर वही चूहा अगर आपके पूरे पेट को काटने लगे और आप देखकर भी कुछ ना कर सकें तो कितना दर्द होगा.
इस प्रकिया में कैदियों को एक पिंजरे में रखा जाता था, जिसमें सैकड़ो चूहे छोड़ दिए जाते थे और फिर वह चूहे उस कैदी को नोंच डालते थे. इन चूहों को विशेषकर इंसानी मांस खाने की ही आदत लगाई जाती थी. इस तरह की मौत बेहद दर्दनाक होती थी.
मौत के यह तरीके बेहद क्रूर और अमानवीय थे. लेकिन इन सबमें से “सार्वजनिक सजा” का तरीका ही ऐसा तरीका था जिसे अगर समाज चाहे तो आज के समय में भी इस्तेमाल कर सकता है. बाकी कोई भी तरीका इंसान के मानवीय अधिकारों का उल्लंघन होगा. एक कैदी भी एक इंसान ही होता है. उसके भी कुछ अधिकार होते हैं जिनका हमें आदर करना चाहिए. लेकिन यही बातें उन कैदियों के लिए बेमानी लगती हैं जो बलात्कार, रेप और आतंकवाद के जुर्म में पकड़े जाते हैं. आज के समय में बढ़ते रेप और बलात्कार के केसों को देखकर लगता है कि समाज को एक बार फिर से “सार्वजनिक सजा” का प्रावधान शुरू कर देना चाहिए.
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