शिक्षा और तर्क विज्ञान के प्रचार-प्रसार के बाद आज हम मनुष्य के साथ घटित होने वाली वारदातों को समझ पाने में सक्षम हैं. अगर किसी व्यक्ति को मानसिक या शारीरिक रूप से कोई परेशानी होती है तो हम उसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सुलझा लेते हैं. लेकिन फिर भी आज बहुत सी घटनाएं ऐसी होती हैं जो सभी तर्कों को नकार देती हैं. ऐसा क्यों हो रहा है, इसके पीछे कारण क्या है, हालात कब सुधरेंगे आदि जैसे प्रश्नों का उत्तर खोज पाना लगभग मुश्किल हो जाता है. आज के हालातों को छोड़ अगर अतीत के हालातों पर नजर डाली जाए तो पंद्रहवीं शताब्दी के दौरान पूरे यूरोप में एक ऐसी बीमारी का कहर टूट पड़ा था जिसमें शरीर से निकलने वाला पसीना ही मृत्यु का कारण बन जाता था. शरीर से इतना भयानक पसीना निकलता था जो चंद घंटों में ही व्यक्ति को मौत की आगोश में ले जाता था.
स्वेटिंग सिकनेस नाम की इस रहस्यमयी बीमारी ने पहले इंग्लैंड को अपनी चपेट में लिया और बाद में पूरे यूरोप में अपने पांव पसार लिए थे. इस बीमारी से बचने का उपाय तो दूर, लोग यह भी नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर इसके पीछे कारण क्या है.
इस बीमारी की शुरूआत 1485 में हुई थी और 1551 में यह महामारी अंतिम बार फैली थी. जितने अजीब तरीके से यह फैली थी उससे भी ज्यादा रहस्यमयी ढंग से यह गायब भी हो गई थी. इस बीमारी के नतीजे बेहद खतरनाक थे कि मौत कब हो जाती थी पता ही नहीं चलता था.
शरीर में कीलें लेकर जन्मीं एक बच्ची
उल्लेखनीय है कि 1485 में हैनरी सप्तम के राज में यह बीमारी लंदन से शुरू हुई थी. इसका स्वरूप प्लेग से पूरी तरह अलग था. इस दौर के सभी वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने इस बीमारी के बारे में लिखा तो था लेकिन इसका इलाज और कारण दोनों ही नहीं तलाश पाए थे.
इस बीमारी के कुछ सामान्य लक्षण भी अजीब थे, थकावट होने के बाद आदमी तुरंत पसीने-पसीने होने लगता था और फिर उसकी सांसें टूट जाती थीं. यही कारण है कि इस बीमारी को स्वेटिंग सिकनेस का नाम दिया गया था. इससे सिर में दर्द भी रहता और कभी सिर अचानक बेहद हलका महसूस होने लगता था. मरने वाले व्यक्ति के शरीर में कोई भी निशान नहीं मिलते थे. इस रहस्यमयी बीमारी ने इंग्लैंड के शाही परिवार के लोगों और कई अधिकारियों की जान भी ली थी. इस बीमारी के विषय में जानने वाले लोग इसे सिर्फ दैवीय प्रकोप ही कहते हैं.
Read Hindi News
Read Comments