शायद ही कोई इस बात पर यकीन करे कि दिल्ली का रहने वाला एक परिवार अपनी एक विशेष खूबी, जिसे अगर उनका दुर्भाग्य कहें तो गलत नहीं होगा, के कारण गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज करवाने में सफल हुआ है. जिस रिकॉर्ड में शामिल होने के लिए आम जन ना जाने क्या-क्या हथकंडे अपनाते हैं, प्रकृति की थोड़ी सी लापरवाही ने इस परिवार को स्वत: ही गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के योग्य करार दिया है.
विदेशियों की भांति सफेद चमड़ी लिए इस भारतीय परिवार ने दुनियां के सबसे विशाल अल्बिनो (वर्णहीन) परिवार होने के कारण विश्व रिकॉर्ड कायम किया है. 50 वर्षीय रोसेटॉरी और 45 वर्षीय मानी के इस पुल्लन परिवार में 10 सदस्य हैं और यह सभी अल्बिनो हैं.
पिछले कई वर्षों से यह परिवार अन्य लोगों यहां तक कि अपने सगे-संबंधियों से भी दूर रह रहा था. उनके पड़ोसी उन्हें विदेशी समझते हैं. क्योंकि उनकी त्वचा और बालों का रंग देखकर कोई नहीं कह सकता कि वे भारतीय हैं. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की टीम ने इस परिवार को खोजा और इन्हें विश्व के सबसे बड़े अल्बिनो परिवार के रूप में इन रिकॉर्ड्स में शामिल कर लिया है.
विजय (24), रामकिशन (19), रेणु (23), दीपा (21) और पूजा (18) को यह बीमारी अपने माता-पिता से विरासत में मिली है. रोसेटॉरी की 23 वर्षीय बेटी रेणु का विवाह 27 वर्षीय रोशेह से हुआ है जो स्वयं वर्णहीनता की बीमारी से पीड़ित है. रेणु और रोशेह का एक पुत्र भी अल्बिनो है. इतना बड़ा परिवार अपनी आर्थिक तंगी के कारण दिल्ली के एक सिंगल बेडरूम फ्लैट में रहता है.
द सन में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार रोसेटॉरी का कहना है कि जब वह अपने घर से बाहर निकलते हैं तो लोग उन्हें अंग्रेज ही कहकर पुकारते हैं. इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की नजर बेहद कमजोर होती है, धूप में ज्यादा देर तक रहने में और तेज रोशनी में देख पाने में अल्बिनो लोगों को बहुत परेशानी होती है.
रोसेटॉरी कहते हैं कि इन सब के बावजूद हम खुश हैं और बिना किसी परेशानी के जीवन व्यतीत करने की कोशिश करते हैं.
आंकड़ों और विशेषज्ञों के अनुसार एल्बेनिज्म नाम की यह बीमारी 17,000 लोगों में से किसी एक को होती है, लेकिन यह परिवार इन सभी कथनों और आंकड़ों का अपवाद ही है.
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