शातिर और खतरनाक अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए फारेंसिक विज्ञान ने एक नई विधा या यूं कहें कि एक नई तरकीब खोज निकाली है. हो सकता है यह नया चमत्कारी तरीका आप में से बहुत लोगों को अजीब और अविश्वसनीय प्रतीत हो लेकिन अब मकड़ी के जाले भी बता देंगे कि हत्या जैसे क्रूर और जघन्य अपराध का दोषी कौन है.
जयपुर (राजस्थान) के एसएमएस अस्पताल के वैज्ञानिकों द्वारी खोजी गई इस विधा के अंतर्गत हत्या के लिए प्रयुक्त हथियार पर लगे मकड़ी के जाले में मौजूद परागकणों की सहायता से यह पता लगाया जा सकता है कि हत्या किस स्थान पर की गई है. यह अपराध अंवेषण की नई तकनीक है और कोलकाता में इससे संबंधित रिसर्च जारी है.
अस्पताल के फारेंसिक विभाग के अध्यक्ष डॉ. शिव कोचर का कहना है कि मकड़ी के जालों को घटना स्थल पर मौजूद साक्ष्यों में नजरअंदाज ही किया जाता है. उन्हें क्राइम सीन में महत्व भी नहीं दिया जाता जबकि यह बहुत महत्वपूर्ण प्रमाणित हो सकते हैं.
फारेंसिक वानस्पतिक विज्ञान के अंदर मकड़ी के जालों में परागकण पाए जाते हैं. अगर जिस स्थान पर हत्या हुई है वहां वनस्पति मौजूद है तो निश्चित रूप से हत्या में प्रयोग हुए हथियार में वह परागकण लग जाएंगे और फिर चाहे हथियार कहीं और क्यों ना फेंक दिया जाएं यह बहुत आसानी से पता चल जाएगा कि हत्या हुई कहां थी.
इस नए अंवेषण के अलावा वैज्ञानिकों ने राख हो चुके दांतों के आधार पर व्यक्ति की उम्र तक पहुंचने का भी प्रभावी तरीका ढूंढ निकाला है. इस तकनीक के अनुसार राख हो चुके दांतों की डिजिटल 3डी सीटी स्कैन इमेजिंग कर कंप्यूटर एडेड डिजाइन के जरिए पल्प में डीएनए नष्ट हो जाने के बाद भी मृतक की पहचान व उम्र मालूम की जा सकती है. कई बार ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जिसमें मृतक पूरी तरह राख हो जाते हैं, उनके शवों द्वारा उनकी पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में यह तकनीक बहुत कामयाब सिद्ध हो सकती है.
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