भारत की राजधानी दिल्ली का एक विस्तृत इतिहास है. महाभारत काल से लेकर मुगलों के शासन तक यहां समय-समय पर कई महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनैतिक घटनाएं होती रही हैं. एक प्राचीन नगर होने के कारण दिल्ली का ऐतिहासिक महत्व भी बहुत उल्लेखनीय है. एक तरफ जहां ल्यूटियंस की दिल्ली है वहीं शाहजहांनाबाद, जिसे अब पुरानी दिल्ली कहा जाता है, भी अपने भीतर कई ऐतिहसिक घटनाक्रमों को सहेजे हुए है. मुगल शासकों ने दिल्ली को अपनी सत्ता के केंद्र के रूप में प्रयोग किया. एक ओर जहां हुमायूं का मकबरा जैसा मुगल शैली की ऐतिहासिक इमारत है तो दूसरी ओर निज़ामुद्दीन औलिया की पारलौकिक दरगाह. इसके अलावा लाल-किला, जंतर-मंतर, कुतुब मीनार भी दिल्ली के ऐतिहासिक महत्व को बखूबी बयां करते हैं.
लाल किला – भारत की शान कहे जाने वाले इस किले की नींव शाहजहां के काल में पड़ी थी. इस इमारत को बनने में नौ वर्ष का समय लगा. अन्य मुगल इमारतों की तरह यह इमारत भी अष्टभुजाकार है. लाल-किले में प्रवेश करने के दो द्वार हैं लाहौरी गेट और हाथीपोल. हाथी पोल के विषय में यह माना जाता है कि राजा और उसके मेहमान हाथी से उतरकर यही से किले में प्रवेश किया करते थे. लाल किले के अन्य प्रमुख आकर्षण हैं मुमताज महल, रंग महल, खास महल, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, हमाम और शाह बुर्ज. इसी किले पर स्वतंत्रता दिवस के दिन भारत के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और भाषण देते हैं.
हुमायूं का मकबरा – हुमायूं एक महान मुगल बादशाह था जिसकी मृत्यु शेर मंडल पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिर कर हुई थी. हुमायूं की पत्नी हाजी बेगम ने उसकी याद में यह मकबरा बनवाया था. 1562-1572 के बीच बना यह मकबरा आज दिल्ली के प्रमुख पर्यटक स्थलों में एक है. फारसी वास्तुकार मिरक मिर्जा गियायुथ की छाप इस इमारत पर साफ देखी जा सकती है. यह मकबरा यमुना नदी के किनारे संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास स्थित है. यूनेस्को ने भी इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया है.
पुराना किला – सूर वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी ने 16वीं सदी में इस किले का निर्माण करवाया था. 1539-40 में शेरशाह सूरी ने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी मुगल बादशाह हुमायूं को हराकर दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया. 1545 में उनकी मृत्यु के बाद हुमायूं ने एक बार फिर दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया था. शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई गई लाल पत्थरों की इमारत शेर मंडल में हुमायूं ने अपना पुस्तकालय बनाया. इतिहासकारों का कहना है कि इसी इमारत से गिरने की वजह से हुमायूं की मृत्यु हुई थी. यह किला केवल देशी-विदेशी पर्यटकों को ही आकर्षित नहीं करता बल्कि इतिहासकारों और पुरातत्व में रुचि रखने वाले लोगों को भी यह बहुत लुभाता है. भारतीय पुरातत्व विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस स्थान पर पुराना किला बना है उस स्थान पर इंद्रप्रस्थ बसा हुआ था. इंद्रप्रस्थ को पुराणों में महाभारत काल का नगर माना जाता है. इसमें प्रवेश करने के तीन दरवाजे हैं – हुमायूं दरवाजा, तलकी दरवाजा और बड़ा दरवाजा. लेकिन आजकल केवल बड़ा दरवाजा ही प्रयोग में लाया जाता है. सभी दरवाजे दो-मंजिला हैं. वर्तमान में यहां एक बोट क्लब है जहां नौकायन का आनंद लिया जा सकता है.
जंतर मंतर – सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1724 में जंतर-मंतर का निर्माण करवाया था. यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है. मोहम्मद शाह के शासन काल में हिंदू और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थिति को लेकिर बहस छिड़ गई थी. इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया. ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए थे. सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है. मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है. राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताते हैं.
कुतुब मीनार – कुतुब मीनार का निर्माण कुतुब-उद-दीन ऐबक ने 1199 में शुरू करवाया था और इल्तुमिश ने 1368 में इसे पूरा कराया. इस इमारत का नाम ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया. कुतुबमीनार मूल रूप से सात मंजिल का था लेकिन अब यह पांच मंजिल का ही रह गया है. कुतुब मीनार की कुल ऊंचाई 72.5 मी. है और इसमें 379 सीढ़ियां हैं. ऐसा माना जाता है कि इसका प्रयोग पास बनी मस्जिद की मीनार के रूप में होता था और यहां से अजान दी जाती थी. लाल और हल्के पीले पत्थर से बनी इस इमारत पर कुरान की आयतें लिखी हैं. कुतुबमीनार मूल रूप से सात मंजिल का था लेकिन अब यह पांच मंजिल का ही रह गया है. कुतुब मीनार की कुल ऊंचाई 72.5 मी. है और इसमें 379 सीढ़ियां हैं. जिन बादशाहों ने इसकी मरम्मत कराई उनका उल्लेख इसकी दीवारों पर मिलता है. कुतुब मीनार परिसर में और भी कई इमारते हैं. भारत की पहली कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, अलाई दरवाजा और इल्तुमिश का मकबरा भी यहां बना हुआ है. मस्जिद के पास ही चौथी शताब्दी में बना लौहस्तंभ भी है जो पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है.
इंडिया गेट – राजपथ पर स्थित इंडिया गेट का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में मारे गए 90,000 भारतीय सैनिकों की याद में कराया गया था. 160 फीट ऊंचा इंडिया गेट दिल्ली का पहला दरवाजा माना जाता है. जिन सैनिकों की याद में यह बनाया गया था उनके नाम इस इमारत पर खुदे हुए हैं. इसकी नींव 1921 में ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी और इसे कुछ साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इर्विन ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था. अमर जवान ज्योति की स्थापना 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों की याद में की गई थी. जिसे अखंडित रूप से प्रज्वलित किया जाता है.
राजघाट – यमुना नदी के पश्चिमी किनारे पर महात्मा गांधी की समाधि स्थित है. काले संगमरमर से बनी इस समाधि पर उनके अंतिम शब्द ‘हे राम’ उद्धृत हैं. अब यह एक खूबसूरत बाग का रूप ले चुका है. यहां पर खूबसूरत फव्वारे और अनेक प्रकार के पेड़ लगे हुए हैं. यहां पास ही शांति वन में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की समाधि भी है. भारत आने वाले विदेशी उच्चाधिकारी महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए राजघाट अवश्य आते हैं.
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